ब्यूरो रिपोर्ट रोबिन वर्मा।
पिछले दिनों सोशल मीडिया, समाचार पत्रों व मीडिया के माध्य्म से उत्तराखंड में ” विधानसभा बैकडोर भर्ती में भ्रष्टाचार व अनियमितता ” का मामला प्रकाश में आया। इस पर सरकार ने एक जाँच समीति बनाकर 2016 से भर्तियों को निरस्त कर दिया, किंतु यह घोटाला राज्य 2000 में राज्य बनने से लेकर आज तक चल रहा था जिसपर सरकार ने अनदेखी करी। इस विषय पर अबतक अपने करीबियों को भ्रष्टाचार से नौकरी लगाने में शामिल सभी विधानसभा अध्यक्ष और मुख्यमंत्रियों पर भी सरकार ने चुप्पी साधी हुई है , अतः विधानसभा भर्ती में भ्रष्टाचार से नौकरियों को लगाने वाले ताकतवर लोगों पर हाईकोर्ट के सिटिंग जज की निगरानी में जांच कराने हेतु व लूट मचाने वालों से ” सरकारी धन की रिकवरी ” हेतु देहरादून निवासी सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर ने माननीय हाईकोर्ट नैनीताल में जनहित याचिका दायर करी । इस पर याचिकाकर्ता ने विषय को महत्वपूर्ण बताते हुये सुनवाई की अपील करी, जिसका माननीय हाईकोर्ट ने गंभीरता से संज्ञान लिया।
याचिकाकर्ता अभिनव थापर ने माननीय हाईकोर्ट के समक्ष मुख्य बिंदु में सरकार के 2003 शासनादेश जिसमें तदर्थ नियुक्ति पर रोक, संविधान की आर्टिकल 14, 16 व 187 का उल्लंघन जिसमें हर नागरिक को नौकरियों के समान अधिकार व नियमानुसार भर्ती का प्रावधान है, उत्तर प्रदेश विधानसभा की 1974 व उत्तराखंड विधानसभा की 2011 नियमवलयों का उल्लंघन किया गया है ।
याचिकाकर्ता अभिनव थापर ने बताया कि ” याचिका में मांग की गई है की राज्य निर्माण के वर्ष 2000 से 2022 तक समस्त नियुक्तियों की जाँच हाईकोर्ट के सिटिंग जज की निगरानी में किया जाय और भ्रष्टाचारियों से सरकारी धन के लूट को वसूला जाय। सरकार ने पक्षपातपूर्ण कार्य कर अपने करीबियों को नियमों को दरकिनार करते हुए नौकरियां दी है जिससे प्रदेश के लाखों बेरोजगार व शिक्षित युवाओं के साथ धोखा किया है, यह सरकारों द्वारा जघन्य किस्म का भ्रष्टाचार है और वर्तमान सरकार भी दोषियों पर कोई कार्यवाही करती दिख नही रही है ।”
उल्लेखनीय है कि देहरादून निवासी अभिनव थापर ने कोरोनकाल व अन्य कई विषयों पर समाजसेवा में अपनी भागीदारी दी है। पूर्व में भी उत्तराखंड में पहाड़ में स्वास्थ्य सुविधाओं , राज्य के राजस्व हेतु THDC में 100 % शेयर, उत्तराखंड के मूल निवासियों के 70 % रोजगार , कोरोनकाल में निजी हस्पतालों की लूट की वापसी हेतु कई विषयों पर माननीय सुप्रीम कोर्ट नई दिल्ली व माननीय हाईकोर्ट नैनीताल में जनहित याचिकाओं के माध्यम से संघर्ष कर रहे है।
जनहित याचिका के माननीय हाईकोर्ट के अधिवक्ता अभिजय नेगी ने बताया कि हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश युक्त पीठ ने इस याचिका के विधानसभा बैकडोर नियुक्तियों में हुई अनियमितता व भ्रष्टाचार का संज्ञान ले लिया है और सरकार को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने का आदेश दिया।
ब्यूरो रिपोर्ट रोबिन वर्मा।
पिछले दिनों सोशल मीडिया, समाचार पत्रों व मीडिया के माध्य्म से उत्तराखंड में ” विधानसभा बैकडोर भर्ती में भ्रष्टाचार व अनियमितता ” का मामला प्रकाश में आया। इस पर सरकार ने एक जाँच समीति बनाकर 2016 से भर्तियों को निरस्त कर दिया, किंतु यह घोटाला राज्य 2000 में राज्य बनने से लेकर आज तक चल रहा था जिसपर सरकार ने अनदेखी करी। इस विषय पर अबतक अपने करीबियों को भ्रष्टाचार से नौकरी लगाने में शामिल सभी विधानसभा अध्यक्ष और मुख्यमंत्रियों पर भी सरकार ने चुप्पी साधी हुई है , अतः विधानसभा भर्ती में भ्रष्टाचार से नौकरियों को लगाने वाले ताकतवर लोगों पर हाईकोर्ट के सिटिंग जज की निगरानी में जांच कराने हेतु व लूट मचाने वालों से ” सरकारी धन की रिकवरी ” हेतु देहरादून निवासी सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर ने माननीय हाईकोर्ट नैनीताल में जनहित याचिका दायर करी । इस पर याचिकाकर्ता ने विषय को महत्वपूर्ण बताते हुये सुनवाई की अपील करी, जिसका माननीय हाईकोर्ट ने गंभीरता से संज्ञान लिया।
याचिकाकर्ता अभिनव थापर ने माननीय हाईकोर्ट के समक्ष मुख्य बिंदु में सरकार के 2003 शासनादेश जिसमें तदर्थ नियुक्ति पर रोक, संविधान की आर्टिकल 14, 16 व 187 का उल्लंघन जिसमें हर नागरिक को नौकरियों के समान अधिकार व नियमानुसार भर्ती का प्रावधान है, उत्तर प्रदेश विधानसभा की 1974 व उत्तराखंड विधानसभा की 2011 नियमवलयों का उल्लंघन किया गया है ।
याचिकाकर्ता अभिनव थापर ने बताया कि ” याचिका में मांग की गई है की राज्य निर्माण के वर्ष 2000 से 2022 तक समस्त नियुक्तियों की जाँच हाईकोर्ट के सिटिंग जज की निगरानी में किया जाय और भ्रष्टाचारियों से सरकारी धन के लूट को वसूला जाय। सरकार ने पक्षपातपूर्ण कार्य कर अपने करीबियों को नियमों को दरकिनार करते हुए नौकरियां दी है जिससे प्रदेश के लाखों बेरोजगार व शिक्षित युवाओं के साथ धोखा किया है, यह सरकारों द्वारा जघन्य किस्म का भ्रष्टाचार है और वर्तमान सरकार भी दोषियों पर कोई कार्यवाही करती दिख नही रही है ।”
उल्लेखनीय है कि देहरादून निवासी अभिनव थापर ने कोरोनकाल व अन्य कई विषयों पर समाजसेवा में अपनी भागीदारी दी है। पूर्व में भी उत्तराखंड में पहाड़ में स्वास्थ्य सुविधाओं , राज्य के राजस्व हेतु THDC में 100 % शेयर, उत्तराखंड के मूल निवासियों के 70 % रोजगार , कोरोनकाल में निजी हस्पतालों की लूट की वापसी हेतु कई विषयों पर माननीय सुप्रीम कोर्ट नई दिल्ली व माननीय हाईकोर्ट नैनीताल में जनहित याचिकाओं के माध्यम से संघर्ष कर रहे है।
जनहित याचिका के माननीय हाईकोर्ट के अधिवक्ता अभिजय नेगी ने बताया कि हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश युक्त पीठ ने इस याचिका के विधानसभा बैकडोर नियुक्तियों में हुई अनियमितता व भ्रष्टाचार का संज्ञान ले लिया है और सरकार को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने का आदेश दिया।
ब्यूरो रिपोर्ट रोबिन वर्मा।
पिछले दिनों सोशल मीडिया, समाचार पत्रों व मीडिया के माध्य्म से उत्तराखंड में ” विधानसभा बैकडोर भर्ती में भ्रष्टाचार व अनियमितता ” का मामला प्रकाश में आया। इस पर सरकार ने एक जाँच समीति बनाकर 2016 से भर्तियों को निरस्त कर दिया, किंतु यह घोटाला राज्य 2000 में राज्य बनने से लेकर आज तक चल रहा था जिसपर सरकार ने अनदेखी करी। इस विषय पर अबतक अपने करीबियों को भ्रष्टाचार से नौकरी लगाने में शामिल सभी विधानसभा अध्यक्ष और मुख्यमंत्रियों पर भी सरकार ने चुप्पी साधी हुई है , अतः विधानसभा भर्ती में भ्रष्टाचार से नौकरियों को लगाने वाले ताकतवर लोगों पर हाईकोर्ट के सिटिंग जज की निगरानी में जांच कराने हेतु व लूट मचाने वालों से ” सरकारी धन की रिकवरी ” हेतु देहरादून निवासी सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर ने माननीय हाईकोर्ट नैनीताल में जनहित याचिका दायर करी । इस पर याचिकाकर्ता ने विषय को महत्वपूर्ण बताते हुये सुनवाई की अपील करी, जिसका माननीय हाईकोर्ट ने गंभीरता से संज्ञान लिया।
याचिकाकर्ता अभिनव थापर ने माननीय हाईकोर्ट के समक्ष मुख्य बिंदु में सरकार के 2003 शासनादेश जिसमें तदर्थ नियुक्ति पर रोक, संविधान की आर्टिकल 14, 16 व 187 का उल्लंघन जिसमें हर नागरिक को नौकरियों के समान अधिकार व नियमानुसार भर्ती का प्रावधान है, उत्तर प्रदेश विधानसभा की 1974 व उत्तराखंड विधानसभा की 2011 नियमवलयों का उल्लंघन किया गया है ।
याचिकाकर्ता अभिनव थापर ने बताया कि ” याचिका में मांग की गई है की राज्य निर्माण के वर्ष 2000 से 2022 तक समस्त नियुक्तियों की जाँच हाईकोर्ट के सिटिंग जज की निगरानी में किया जाय और भ्रष्टाचारियों से सरकारी धन के लूट को वसूला जाय। सरकार ने पक्षपातपूर्ण कार्य कर अपने करीबियों को नियमों को दरकिनार करते हुए नौकरियां दी है जिससे प्रदेश के लाखों बेरोजगार व शिक्षित युवाओं के साथ धोखा किया है, यह सरकारों द्वारा जघन्य किस्म का भ्रष्टाचार है और वर्तमान सरकार भी दोषियों पर कोई कार्यवाही करती दिख नही रही है ।”
उल्लेखनीय है कि देहरादून निवासी अभिनव थापर ने कोरोनकाल व अन्य कई विषयों पर समाजसेवा में अपनी भागीदारी दी है। पूर्व में भी उत्तराखंड में पहाड़ में स्वास्थ्य सुविधाओं , राज्य के राजस्व हेतु THDC में 100 % शेयर, उत्तराखंड के मूल निवासियों के 70 % रोजगार , कोरोनकाल में निजी हस्पतालों की लूट की वापसी हेतु कई विषयों पर माननीय सुप्रीम कोर्ट नई दिल्ली व माननीय हाईकोर्ट नैनीताल में जनहित याचिकाओं के माध्यम से संघर्ष कर रहे है।
जनहित याचिका के माननीय हाईकोर्ट के अधिवक्ता अभिजय नेगी ने बताया कि हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश युक्त पीठ ने इस याचिका के विधानसभा बैकडोर नियुक्तियों में हुई अनियमितता व भ्रष्टाचार का संज्ञान ले लिया है और सरकार को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने का आदेश दिया।
ब्यूरो रिपोर्ट रोबिन वर्मा।
पिछले दिनों सोशल मीडिया, समाचार पत्रों व मीडिया के माध्य्म से उत्तराखंड में ” विधानसभा बैकडोर भर्ती में भ्रष्टाचार व अनियमितता ” का मामला प्रकाश में आया। इस पर सरकार ने एक जाँच समीति बनाकर 2016 से भर्तियों को निरस्त कर दिया, किंतु यह घोटाला राज्य 2000 में राज्य बनने से लेकर आज तक चल रहा था जिसपर सरकार ने अनदेखी करी। इस विषय पर अबतक अपने करीबियों को भ्रष्टाचार से नौकरी लगाने में शामिल सभी विधानसभा अध्यक्ष और मुख्यमंत्रियों पर भी सरकार ने चुप्पी साधी हुई है , अतः विधानसभा भर्ती में भ्रष्टाचार से नौकरियों को लगाने वाले ताकतवर लोगों पर हाईकोर्ट के सिटिंग जज की निगरानी में जांच कराने हेतु व लूट मचाने वालों से ” सरकारी धन की रिकवरी ” हेतु देहरादून निवासी सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर ने माननीय हाईकोर्ट नैनीताल में जनहित याचिका दायर करी । इस पर याचिकाकर्ता ने विषय को महत्वपूर्ण बताते हुये सुनवाई की अपील करी, जिसका माननीय हाईकोर्ट ने गंभीरता से संज्ञान लिया।
याचिकाकर्ता अभिनव थापर ने माननीय हाईकोर्ट के समक्ष मुख्य बिंदु में सरकार के 2003 शासनादेश जिसमें तदर्थ नियुक्ति पर रोक, संविधान की आर्टिकल 14, 16 व 187 का उल्लंघन जिसमें हर नागरिक को नौकरियों के समान अधिकार व नियमानुसार भर्ती का प्रावधान है, उत्तर प्रदेश विधानसभा की 1974 व उत्तराखंड विधानसभा की 2011 नियमवलयों का उल्लंघन किया गया है ।
याचिकाकर्ता अभिनव थापर ने बताया कि ” याचिका में मांग की गई है की राज्य निर्माण के वर्ष 2000 से 2022 तक समस्त नियुक्तियों की जाँच हाईकोर्ट के सिटिंग जज की निगरानी में किया जाय और भ्रष्टाचारियों से सरकारी धन के लूट को वसूला जाय। सरकार ने पक्षपातपूर्ण कार्य कर अपने करीबियों को नियमों को दरकिनार करते हुए नौकरियां दी है जिससे प्रदेश के लाखों बेरोजगार व शिक्षित युवाओं के साथ धोखा किया है, यह सरकारों द्वारा जघन्य किस्म का भ्रष्टाचार है और वर्तमान सरकार भी दोषियों पर कोई कार्यवाही करती दिख नही रही है ।”
उल्लेखनीय है कि देहरादून निवासी अभिनव थापर ने कोरोनकाल व अन्य कई विषयों पर समाजसेवा में अपनी भागीदारी दी है। पूर्व में भी उत्तराखंड में पहाड़ में स्वास्थ्य सुविधाओं , राज्य के राजस्व हेतु THDC में 100 % शेयर, उत्तराखंड के मूल निवासियों के 70 % रोजगार , कोरोनकाल में निजी हस्पतालों की लूट की वापसी हेतु कई विषयों पर माननीय सुप्रीम कोर्ट नई दिल्ली व माननीय हाईकोर्ट नैनीताल में जनहित याचिकाओं के माध्यम से संघर्ष कर रहे है।
जनहित याचिका के माननीय हाईकोर्ट के अधिवक्ता अभिजय नेगी ने बताया कि हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश युक्त पीठ ने इस याचिका के विधानसभा बैकडोर नियुक्तियों में हुई अनियमितता व भ्रष्टाचार का संज्ञान ले लिया है और सरकार को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने का आदेश दिया।