डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
बरसात ने तबाही मचानी शुरू कर दी है। जिससे सिस्टम की काहिली भी उजागर हो रही है। आपदा की दृष्टि से कपकोट विकासखंड अति संवेदनशील है। कपकोट में अतिवृष्टि की घटनाएं सामने आती रही हैं। जिला आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार 2005 में कपकोट के सुडिंग में अतिवृष्टि से तीन लोग मारे गए थे। 2013 में पोथिंग में भी तीन लोग मारे गए। 2013 में कपकोट के बमसेरा में तीन लोगों की मौत हो गई थी। वहीं, कुंवारी में पहाड़ी दरकने के बाद अभी तक ग्रामीण पुर्नवास के इंतजार में हैं।जिला भूकंप और भूस्खलन की दृष्टि से जोन पांच में आता है। बारिश की आशंका से पूर्व लोगों को हाई अलर्ट किया जाता है। सड़क, बिजली, पानी आदि को नुकसान होने पर उसकी मरम्मत प्राथमिकता के अनुसार की जाती है। प्राकृतिक आपदाओं के लिए सर्वाधिक संवेदनशील उत्तराखंड राज्य में एक राज्य आपदा प्रबंधन संस्थान खोले जाने की सिफारिश की गई है। साथ ही यह सुझाव भी दिया गया है कि चमोली (जोशीमठ) में आपदा पीड़ितों मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव को कम करने के लिए एक काउंसिलिंग सेंटर भी खोला जाना चाहिए। ये सिफारिश राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) की अध्ययन टीम ने की है। इस टीम ने पिछले साल सात फरवरी को चमोली जिले के आई रैंणी आपदा के कारणों और उससे उपजे हालात का अध्ययन किया। रिपोर्ट के मुताबिक, ग्लेशियर टूटने से आई बाढ़ में करीब 80 लोग मारे गए थे, जबकि 124 लापता हो गए थे। इस आपदा से 520 मेगावाट की तपोवन विष्णुगाड़ जल विद्युत परियोजना पूरी तरह से ध्वस्त हो गई थी। एनडीएम ने भारतीय मौसम विभाग, वाडिया इंस्टीटयूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी व जशक्ति व खान मंत्रालय के साथ मिलकर यह अध्ययन कराया। रिपोर्ट में हिमालय क्षेत्र में ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों के लिए अध्ययन करने की सलाह दी गई है। ऊर्जा मंत्रालय से कहा गया है कि हिमालय में बहुत सी जल विद्युत परियोजनाएं पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील हैं। रैंणी आपदा की भयावहता की एक बड़ी वजह पूर्व चेतावनी प्रणाली का विकसित न होना और ऐसे हादसों का अनुमान लगा पाने की अक्षमता है। रिपोर्ट में पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित की सिफारिश की गई। कहा गया नदी के ऊपर जहां ग्लेशियर से पानी आ रहा है, वहां एक निगरानी व चेतावनी प्रणाली बनाई जाए जो 24 घंटे ऐसे नियंत्रण कक्ष से नियंत्रित हो। यह आठ-आठ घंटे की तीन पालियों में लगातार सक्रिय रहे। निगरानी करने परियोजना से ही नहीं जिला प्रशासन से भी जुड़े हों। यह ऐसी प्रणाली हो कि एक बटन दबाते ही सभी हितधारकों तक खतरे की सूचना प्रसारित हो जाए। जल विद्युत परियोजनाएं जिनमें सुरंगों को निर्माण हो रहा है, वहां मजदूरों के बाहर निकलने के रास्ते होने चाहिए। सुरंग को खाली कराने के भी अलग रास्ते होने चाहिए। निर्माण लगे मजदूरों को आपदा आने पर बचाने की बार-बार मॉक ड्रिल करानी चाहिए। रिपोर्ट में उत्तराखंड में राज्य आपदा प्रबंधन संस्थान खोलने की सिफारिश की गई। कहा गया कि उत्तराखंड में इस संस्थान की जरूरत इसलिए है क्योंकि यह राज्य बाढ़, भूस्खलन, भूकंप, हिमस्खलन व अन्य प्राकृतिक आपदाओं को लेकर बेहद संवेदनशील है। इन घटनाओं में जोखिम और नुकसान को कम करने के लिए संस्थान संभावित आपदाओं व उनके जोखिम की तकनीकी व वैज्ञानिक तरीके से पहचान कर सकता है। ऐसे अध्ययन के आधार पर बचाव की रणनीति बनाई जा सकती है। रिपोर्ट में ग्लेशियरों के अध्ययन के लिए सेंटर फॉर ग्लेशियल रिसर्च स्टडीज एंड मैनेजमेंट की स्थापना की जरूरत बताई गई। साथ ही कहा गया कि ग्लेशियोलॉजी व ग्लेशियर अध्ययन करने वाले अकादमिक व शोध संस्थान अलग-अलग होकर काम करने के बजाय एक दूसरे को आंकड़ों और अध्ययन को साझा करें और इसके दोहराव से बचें। आपदा के दौरान अब शिक्षक, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एवं सुपरवाइजर भी राहत कार्य में अहम भूमिका निभाएंगे। इसके लिए यूआइआरडी में आपदा प्रबंधन संस्थान की ओर से पांच दिवसीय विशेष प्रशिक्षण दिया जा रहा है। आपदा के लिहाज से बेदह संवेदनशील उत्तराखंड में आपदा का शोध संस्थान खोला जायेगा था।. इसके अलावा दो एयर एंबुलेंस भी आपदा के दौरान तैनात रहेंगी. साथ ही कई महत्वपूर्ण कामों को किये जाने के लिए एक रूपरेखा तैयार की जा रही है. जिससे एक तो भविष्य में प्राकृतिक आपदाओं को रोका जा सके साथ ही आपदा आने पर बेहतर काम और रेस्क्यू किया जा सके.केदारनाथ के बाद चमोली में आई आपदा के बाद राज्य सरकार आपदा पर काम करने के लिए कई पहलुओं पर विचार कर रही है. इसको लेकर अभी तक चार समीक्षा बैठकें भी हुई हैं. बैठक के बाद उत्तराखंड में आपदा शोध संस्थान के खोलने का फैसला किया गया. आपदा में रेस्क्यू के लिए दो एयर एंबुलेंस भेजने के लिए केंद्र को प्रस्ताव भेजा गया थी।. यूनिवर्सिटी और डिग्री कॉलेजों में आपदा का अलग से विषय होगा. एक लाख लोगों को प्रदेश में आपदा को लेकर प्रशिक्षण दिया जायेगा. इसके अलावा राज मिस्त्रियों को भी दिया आपदा का प्रशिक्षण जायेगा. सरकार संवेदनशील इलाकों में सरकार आपदा किट देने की भी बात कर रही है.आपदा प्रबंधन को लेकर मंत्री आपदा एवं पुर्नवास का दावा है की एक महीने के भीतर राज्य में आपदा प्रबंधन विभाग के कामों में तेजी आएगी. उन्होंने कहा कि चमोली में आई आपदा के पीछे के कारणों और भविष्य में इसके लिए पहले से ही क्या काम किये जा सकते हैं. इन सभी को लेकर एक्सपर्ट की टीमें रिसर्च करेंगी था। राज्य के प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होने की याद दिलाई। हर साल खासतौर पर मानसून के दौरान उत्तराखंड को प्राकृतिक आपदाओं से जान-माल का भारी नुकसान झेलना पड़ता है। शोध संस्थान का सपना अधर में लटक है.लेखक के निजी विचार हैं वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।