रिपोर्ट एसपी नौटियाल
वर्ष 2001 की जनसंख्या की तुलना जब वर्ष 2011 में की गयी तो उत्तरखंड के पहाड़ के जिलों में आबादी की वृद्धि दर मैदानी जिली की अपेक्षा बहुत धीमी थी बल्कि अल्मोड़ा व पौड़ी जिला में निरंतर गिरावट आ रही थी जो के पलायन के कारण थी, जिसके साथ-साथ उत्तराखंड के सीमावती गांवों के निवासियों का पलायन होना गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का विषय था। उत्तराखंड देश का एकमात्र राज्य है जहाँ पलायन आयोग का गठन दिनांक 25 अगस्त 2017 को किया गया जिसकी संरचना में पदेन अध्यक्ष मुख्यमंत्री, एक उपाध्यक्ष, पांच सदस्य, ग्रामीण विकास विभाग से एक सदस्य सचिव व एक अपर सदस्य सचिव है। यह एक स्वतंत्र आयोग नहीं है बल्कि नियत कार्यों का आंकलन करना व राज्य सरकार को अपनी सिफारिश देना है।
पलायन आयोग ने अपनी पहली अंतरिम रिपोर्ट वर्ष 2018 में सरकार को दी जिसमें पलायन के प्रमुख कारण रोजगार की समस्या, चिकित्सा सुविधा का आभाव, शिक्षा सुविधा का आभाव, इन्फास्ट्रक्चर का आभाव, कृषि भूमि को पैदावार की कमी, देखा-देखि पलायन, जगली जानवरो के भय से व अन्य विविध कारण। सरकार ने रिवर्स पलायन के लिए मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना, पिकल तथा अन्य प्रकार के बायोमास से विद्युत उत्पादन नीति लायी ,पर वह पलायन करने वालों को आकर्षित नहीं कर पायी। उत्तराखंड बनने के बाद इंडस्ट्रियल एरिया की स्थापना सिडकुल हरिद्वार व पंतनगर में हुयी जहाँ पर देश के बड़े बड़े इंडस्ट्रियल हाउस ने अपनी इकाईयों की स्थापना की है जिसमें टाटा मोटर, हीरो होंडा, महिंद्रा आईटीसी, अशोक लीलैंड प्रमुख हैं, जो आज भी राज्य की अर्थव्यवस्था को सुद्ध करने में अपना योगदान दे रहे हैं।
पहाड़ों में इस बीच लोगों को विरासत में मिला कृषि कार्य के प्रति उदासीनता, जिसका परिणाम लगभग 40% भूमि बंजर हो गयी, खेतों में चीड़ जैसे पेड़ों का आधिपत्य व जंगल से दूर होते लोगों के कारण चीड़ का बांज के वनों में विस्तार व पानी के स्रोतों का रख-रखाव न होने की कारण कई स्रोतों का विलुप्त होना। इस बीच जंगली जानवरों व मानव का संघर्ष भी बढ़ा व बनी में आग की घटनाएं भी।
पहाड़ी में या कहीं भी मनुष्य रहे, भोजन के बाद पहली आवश्यकता स्वास्थ्य सेवायें है जिसका अभाव आज भी पहाड़ के गाँव व कस्बों में दिख रहा है। गांवों से 9 प्रतिशत पलायन इसलिए हुआ की चिकित्सा सुविधा का आभाव है। वर्ष 2000 से पूर्व हिल कैडर लागू था व लोग कैडर के अंतर्गत अपनी सेवायें पहड़ों में लगातार देते रहते थे। वर्ष 2005 में उत्तराखंड राज्य में 44ग्रामीण सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से जिन में चार स्ट्रोम (फिजिशियन, सर्जन, मनोरोग, बालरोग के 176 डॉक्टर कार्यरत होने चाहिये थे जिनमें से 71 कार्यरत थे अर्थात् 60% विशेषज्ञ डाक्टरों की कमी। वर्ष 2022 में 52 ग्रामीण सीएचसी है जहाँ पर 208 विशेषज्ञ डाक्टर होने से पर कार्यरत है 36 यानी 836 डाक्टरों की कमी अतः कमी 23% बढ़ी इसी प्रकार की कमी राज्य की 28 शहरी सीएचसी में है। भारत उत्तराखंड के स्वास्थ्य निदेशालय द्वारा माह जुलाई 2023 में दिए गए आंकड़ों के अनुसार राज्य की 79 सीएचसी में चार स्ट्रीम के 474 डाक्टर होने चाहिये पर कार्यरत केवल 36 यानी 93% डाक्टरों की कमी। इन 79 सीएचसी में से 61 सीएचसी ऐसी है जहाँ पर एक भी विशेषज्ञ डॉक्टर किसी भी स्ट्रीम का तैनात नहीं है। आये दिन पहाड़ो में स्वास्थ्य सेवा के आभाव में लोग दम तोड़ रहे है।
इन 23 सालों में हालांकि चार सरकारी मेडिकल कॉलेज, दो निजी मेडिकल कॉलेज व एक एम्स खुला एलोपैथिक की UG व PG सीटों में उल्लेखनीय वृद्धि हुयी पर सरकारी सेवा में डाक्टरों की रुझान नहीं बना पाये जिससे विशेषज्ञ डाक्टरों की भारी कमी पिछले 23 सालों में हुयी, यहाँ तक सरकारी मेडिकल कालेजों में फैकल्टी की कमी बनी रहती है। बाड़ व्यवस्था में कई डॉक्टरों ने बांड की राशि जमा करके सरकारी सेवा नहीं दी। बांड व्यवस्था समाप्त हो, “यू कोट वी पे जैसे जुगाड़ व्यवस्था समाप्त हो, शहरी एकाधिकारी समाप्त हो व चिकित्सा शिक्षा की लिए अलग से ग्रामीण कैडर बने व निदेशालय में कार्यरत विशेषज्ञ डाक्टरों की पोस्ट कम की जाये। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जी ने कुछ माह पूर्व कहा था की अगले तीन साल में UG व PG की सीट बराबर कर दी जायेगी ऐसी में राज्य के 531 PHC को MBBS डॉक्टर भी नहीं मिल पाएंगे अत: PG मैं फैमिली मेडिसिन के डाक्टरों की सीटें बढ़ा दी जाये व उनको PHC में तैनात किया जाये। जब शहरों में विशेषज्ञ डाक्टरों की सेवायें सरकारी व निजी क्षेत्र में मिल रही है तो उत्तराखंड के 80 लाख लोग क्यों वंचित रहे देहरादून का दशकों पुराना जिला अस्पताल मेडिकल कालेज बन गया जहाँ पर विस्तार के नाम पर आये दिन निर्माण कार्य चलता रहता है। देहरादून में 40 नए वार्ड बने पर एक नया बड़ा सरकारी अस्पताल नहीं बन पाया अतः एक नया बडा अस्पताल/ PGI का निर्माण उपयुक्त स्थल पर हो जैसा सहस्त्रधारा रोड पर पुराने ट्रेन्चिंग ग्राउंड की 100 विद्या भूमि पर जो खाली पड़ी है।