डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला।
दुनियाभर में फैला नकली दवाओं का जाल बच्चों की सेहत के लिए संकट बनता जा रहा है। एक शोध में सामने आया है कि मलेरिया, निमोनिया व अन्य बीमारियों के इलाज के नाम पर बिक रही नकली व निर्धारित मानक से निम्न स्तर की दवाओं से हर साल हजारों बच्चे अपनी जान गंवा रहे हैं। यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ हेल्थ के फोगार्टी इंटरनेशनल सेंटर के सलाहकार जोल ब्रीमैन के अनुसार ऐसी दवाओं से अब तक तीन लाख बच्चों की जान जा चुकी है, जो चिंतनीय है।रिपोर्ट के अनुसार, जानलेवा बीमारियों के इलाज के लिए बेची गईं कुछ दवाओं में प्रिंटर इंक, पेंट और आर्सेनिक मिला है। 2008 में दवा कंपनी फिजर ग्लोबल सिक्योरिटी ने पाया था कि 75 देशों में उसके 29 उत्पादों की नकल बनाई जा रही है। करीब 10 साल बाद अब कंपनी के 95 उत्पादों की नकल 113 देशों में बेची जा रही है। ब्रीमैन का कहना है कि बीते कुछ दशक में कई गैर-सरकारी संगठन इस मुद्दे को लेकर लोगों को जागरूक करने में जुटे हैं। इसके अलावा ड्रग्स एंड क्राइम से जुड़ी संयुक्त राष्ट्र की संस्था, इंटरपोल और डब्ल्यूएचओ ने भी इस मुद्दे को उठाना शुरू किया है।विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में दस में से एक नकली या घटिया दवा की सप्लाई होती है। सारे संसार में नकली दवाइयों का 35 फीसदी हिस्सा भारत से ही जाता है और इसका करीब 4000 करोड़ रुपए के नकली दवा बाजार पर कब्जा है। भारत में बिकने वाली लगभग 20 फीसदी दवाइयां नकली होती हैं। सिर दर्द और सर्दी-जुकाम की ज्यादातर दवाएं या तो नकली होती हैं या फिर घटिया किस्म की होती हैं। इन नकली दवाइयों का जाल भारत में कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैला हुआ है। भारत में दिल्ली, लखनऊ, अहमदाबाद और इन्दौर से पूरे देश को नकली दवाइयों की सप्लाई होती है।ज्यादातर नकली दवाएं झुग्गी-झोपड़ियों में बहुत ही प्रदूषित वातावरण में तैयार की जाती हैं। इन नकली दवाओं की मांग दक्षिण अफ्रीका, रूस और उजबेकिस्तान के साथ-साथ हमारे पड़ोसी देशों जैसे म्यांमार, नेपाल और बांग्लादेश में भी तेजी से बढ़ रही है। एक इंसान जब बीमार पड़ता है तो डॉक्टर और दवा इन्हीं दोनों पर उसकी सारी उम्मीदें टिकी होती हैं। गरीब से गरीब आदमी भी पैसे की चिंता न करते हुए अच्छे से अच्छे डॉक्टर से इलाज कराना चाहता है। इतने प्रयास के बावजूद यदि दवा ही नकली हो, तो इसमें डॉक्टर भी भला क्या करेगा। उत्तराखंड में आखिर किसकी शह पर नकली दवाओं का धंधा फल फूल रहा है, यह यक्ष प्रश्न है। बार-बार कार्रवाई के बाद भी धंधे पर लगाम नहीं लग पा रही है। मजबूरन लोग बीमारी के इलाज में जहर गटकने को मजबूर हैं। एक माह में दूसरी बार है, जब हरिद्वार में ही बड़ी मात्रा में नकली दवाएं पकड़ी गई हैं।दरअसल, उत्तराखंड में यह एक दो कार्रवाई नहीं है, बल्कि इससे पहले भी कई बार नकली दवाएं पकड़ी गई हैं। वर्ष 2018 में हरिद्वार में ही कई इलाकों में पुलिस और अन्य विभागों ने नकली दवाओं का भंडाफोड़ किया था। उस वक्त भी करोड़ों रुपये का कच्चा माल बरामद हुआ था। साथ ही साल के शुरूआत में ऊधमसिंह नगर में बड़ी कार्रवाई की गई थी।एसटीएफ ने तब भी करोड़ों की नकली दवाएं बनाने के मामले में कई लोगों को गिरफ्तार किया था। बार-बार ऐसी कार्रवाई के बावजूद स्थानीय प्रशासन की इस पर कोई नजर नहीं है। किस गोदाम और दुकान में क्या संदिग्ध काम हो रहा, इसकी जानकारी किसी को नहीं है। यहां लोगों की बीमारी ठीक करने का नहीं, बल्कि धीमा जहर तैयार किया जा रहा है। एक दशक में उत्तराखंड में दवा निर्माताओं ने अपनी फैक्टरियां खोली हैं। यहां पर बड़ी मात्रा में नामी कंपनियां कई दवाएं बना रही हैं। यहां काम सीखने के बाद कुछ लोग दवाएं बनाने की बारीकियों को समझ जाते हैं। इसके बाद असली साल्ट को न लेकर कुछ नकली मिलाकर हुबहू दवाएं बनाई जाती हैं। कंही हम भी तो नहीं खा रहे ये नकली दवाएं ? आखिर ये सवाल इसलिए भी उठ रहा है कि इतनी बड़ी मात्रा मैं नकली दवाइयां मिलना आम आदमी के दिमाग मैं यही शक पैदा करता है। इंडस्ट्रियल एरिया में नकली दवा की फैक्ट्री चलाना बिना मिली भगत के क्या संभव हो सकता है.।5 जून को स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने रुड़की के भगवानपुर ग्रामीण इंडस्ट्रियल एरिया में नकली दवा बनाने वाली फैक्ट्री का खुलासा किया था। जहां लाखों की नकली दवाई मिली थी। मौके पर एसटीएफ ने 5 आरोपियों को भी दबोचा था. पकड़े गए आरोपियों को सोमवार को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया था। फैक्ट्री संचालक समेत चार आरोपी अभी भी फरार हैं.आखिर नकली दवाएं उत्तराखंड के अलावा किन-किन राज्यों में सप्लाई की जाती थी।बहरहाल, जिस तरह से हरिद्वार के अंतर्गत भगवानपुर इंडस्ट्रियल इलाके में इतने बड़े पैमाने में नकली दवा बनाने की फैक्ट्री का भंडाफोड़ हुआ है, उससे इस बात के लिए सभी को सतर्क और जागरूक रहने की आवश्यकता है कि या दवाखाने में मिलने वाली दवा नकली तो नहीं है। अगर ऐसा है तो बीमार आदमी का स्वस्थ होना तो दूर बल्कि, उसके जीवन से खिलवाड़ भी हो सकता है।जानकारी के मुताबिक, भगवानपुर इंडस्ट्रियल एरिया में नकली दवा फैक्ट्री का संचालन करने वाला वांटेड आरोपी महाराष्ट्र का रहने वाला बताया जा रहा है। जबकि, उसका पार्टनर लक्सर इलाके का रहने वाला है. इस केस में तीसरे नंबर का वांटेड और उसका पार्टनर भी है. इतने बड़े पैमाने पर नकली दवाओं की फैक्ट्री का पर्दाफाश हुआ है, तो जाहिर है सवाल भी गंभीर उठ रहा है कि इतने बड़े पैमाने में नकली दवाओं की सप्लाई कब से और किन किन राज्यों में हो रही थी? एसटीएफ के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है कि इस गोरखधंधे में संबंधित सरकारी विभागों में से कई लोगों की मिलीभगत हो सकती है. ऐसे में नकली दवाओं की सप्लाई चेन को पकड़ना भी एसटीएफ के सामने बड़ी चुनौती है। एसटीएफ के मुताबिक, भगवानपुर इंडस्ट्रियल एरिया में एक बंद फैक्ट्री को अंदर खाने चालू करा कर जिस तरह से नकली दवाओं को तैयार करने का धंधा चल रहा था, उसके कई कार्यालय भी बनाए गए थे। फार्मा की फैक्ट्री में लाखों की संख्या में टैबलेट तैयार होते थे. जिन्हें अलग-अलग गोदामों में रखा जाता था. वहां से अलग-अलग दफ्तरों और डीलरों के जरिए एक लंबी चौड़ी सप्लाई चेन भी इसमें काम कर रही थी. उत्तराखंड के अलावा देश के अन्य राज्यों में नकली दवाओं की सप्लाई के लिए कोरियर कंपनी का सहारा भी लिया जा रहा थाएसएसपी का कहना है कि, इतने बड़े पैमाने में जो दवाइयां नकली बन रही थी, उनकी सप्लाई और डिमांड कितनी बड़ी रही होगी। जिसके चलते रोजाना हजारों की संख्या दवाइयों की खेप तैयार हो रही थी। ऐसे में इस बात की जांच पड़ताल करना भी बेहद आवश्यक है कि इसके खरीदार और सप्लायर कौन-कौन हैं? क्योंकि ये दवाएं अधिकृत नहीं है। उनका कहना है कि एसटीएफ की टीम का अगला लक्ष्य यही है कि इन नकली दवाओं की खपत कहां और किस किस के माध्यम से जाती थी, इसका खुलासा करना है।लेखक के निजी विचार हैं वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।