डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला।
मथुरा दत्त मठपाल जी का जन्म 29 जून 1941 के दिन अल्मोड़ा जिले के भिक्यासैंण ब्लॉक के नौला गांव में हुआ.इनके पिता का नाम श्री हरिदत्त मठपाल और माता का नाम श्रीमती कांति देवी मठपाल था इनके पिता उत्तराखंड के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में प्रमुख रहे थे. कृष्ण चन्द्र मिश्रा द्वारा लिखित एक लेख “दुदबोलि के सेवक मथुरादत्त मठपाल” से मिली जानकारी के अनुसार श्री मथुरादत्त मठपाल मठपाल जी की प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा गांव के प्राइमरी स्कूल में,आठवीं तक की शिक्षा मानिला के मिडिल स्कूल में और हाई स्कूल और इंटर तक की शिक्षा रानीखेत के ‘नेशनल हाई स्कूल’ में हुई. मठपाल जी ने इतिहास, संस्कृति एवं राजनीति विज्ञान आदि तीन विषयों में एम.ए.करने के पश्चात अपना सम्पूर्ण जीवन अध्यापन में लगाया. राजकीय इंटर कॉलेज विनायक में उन्होंने 35 साल तक इतिहास के प्रवक्ता के रूप में अध्यापन कार्य किया और सन् 1998 में उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर अपना सम्पूर्ण जीवन दुदबोलि साहित्य के संवर्धन हेतु अर्पित कर दिया. मठपाल जी कुमाऊँनी भाषा और साहित्य को एक राष्ट्रीय पहचान से जोड़ने वाली ‘दुदबोलि’ पत्रिका को तमाम आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद आज भी नियमित रूप से निकाल रहे हैं. यह पत्रिका कुमाउंनी भाषा में प्रकाशित होती है.बड़ी मेहनत और लगन से इसके संपादक श्री मथुरा दत्त मठपाल जी विगत 20 वर्षों से सामान्य जनमानस के बीच कम प्रयुक्त होती जा रही कुमाऊंनी भाषा को बचाने का एक भगीरथ प्रयास कर रहे हैं. रिटायर होने के बाद मठपाल जी ने रामनगर शहर के पंपापुरी स्थित अपने आवास से वर्ष 2000 में ‘दुदबोलि’ नाम से कुमाऊंनी पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया. दुदबोलि के 24 त्रैमासिक (64 पृष्ठ) अंक निकालने के बाद 2006 में इसे वार्षिक (340 पृष्ठ) का कर दिया गया. जिनमें लोक कथा, लोक साहित्य, कविता, हास्य, कहानी, निबंध, नाटक, अनुवाद, मुहावरे, शब्दावली व यात्रा वृतांत आदि को जगह दी जाती है.डाॅ. रमेश शाह, शेखर जोशी, ताराचंद्र त्रिपाठी, गोपाल भटट, पूरन जोशी, डाॅ. प्रयाग जोशी सरीखे 50 से भी ज्यादा लब्धप्रतिष्ठ कवि व लेखक ‘दुदबोलि’ से जुड़े हैं. बांग्ला, गुजराती, अंग्रेजी, संस्कृत, हिंदी, नेपाली, गढ़वाली साहित्य मूल रूप में या कुमाऊंनी अनुवाद को इसमें स्थान मिला है. श्रीमद्भगवद्गीता का कुमाऊंनी अनुवाद और कालिदास के मेघदूत का कुमाऊंनी अनुवाद भी इसमें प्रकाशित हुआ है. नेपाली और कुमाऊंनी बालगीत भी छापे गए हैं.मठपाल जी के स्वयं रचित पांच काव्य संकलन प्रकाशित हो चुके हैं.आजादी से पहले व बाद में भी कुमाऊंनी भाषा में अनेक पत्रिकाएं प्रकाशित हुई हैं.मगर ‘दुदबोलि’ पत्रिका के प्रकाशन की निरंतरता और इसका समर्पणभाव अनूठा ही है. एक दिन अवश्य कुमाऊंनी बोली संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हो पाएगी तो उसका एक कारण मठपाल जी का ‘दुदबोलि’ पत्रिका में लिपिबद्ध किया गया साहित्य का आधार होगा जो इस तथ्य को प्रमाणित करता है कि कुमाऊंनी मात्र एक बोली नहीं अपितु साहित्य सृजन की एक उत्कृष्ट भाषा भी है. एक संचेतनशील कवि और साहित्यकार होने के अलावा ‘दुदबोलि’ जैसी कुमाऊंनी भाषा और साहित्य को समर्पित पत्रिका का कठिन परिस्थितियों में भी सम्पादन और प्रकाशन का कार्य निरन्तर रूप से जारी रखना,उनका समर्पित अविस्मरणीय योगदान ही माना जाएगा.श्री मठपाल जी कुमाऊं क्षेत्र के ही नहीं समूचे उत्तराखण्ड के लिए प्रेरणाश्रोत हैं. उत्तराखण्ड की आंचलिक भाषा के विकास में उनके द्वारा किये गए योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता है. यह समस्त उत्तराखंड वासियों के लिए गौरव की बात है कि कुमाऊं के दो समर्पित साहित्यकारों चारु चन्द्र पाण्डे और मथुरादत्त मठपाल को साहित्य अकादमी ने पहली बार कुमाउनी भाषा को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता देते हुए उन्हें संयुक्त रूप से ‘भाषा सम्मान’ के लिये चुना. 16 अगस्त, 2015 को कोयम्बटूर के भारतीय विद्या भवन के सभागार में मृदुभाषी मथुरादत्त मठपाल जी ने साहित्य अकादेमी के उपाध्यक्ष व प्रतिष्ठित तमिल कवि सिरपी बालसुब्रमण्यम के हाथों प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह तथा नकद पुरस्कार ग्रहण करते हुए ‘‘द्वि आँखर- कुमाउनीक् बाबत’’ शीर्षक से अपने सम्बोधन में जैसे ही कुमाऊंनी संस्कृति और भाषा के महत्त्व को प्रस्तुत किया तो उस समय भारतीय विद्या भवन का हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा था.अपने इस संबोधन में मठपाल जी ने बताया कि कुमाउनी-गढ़वाली में मातृभाषा के लिए ‘दुदबोली’ का प्रयोग इसलिए किया जाता है क्योंकि यह बोली हमें माँ के दूध के साथ विरासत में मिलती है. उन्होंने बताया कि कुमाउनी के पास अकूत शब्द भंडार है,लोकोक्ति और मुहावरे हैं,हजारों ध्वन्यात्मक शब्द हैं और लोकसाहित्य की विविध विधाएं हैं. इस अवसर पर मठपाल जी ने कुमांऊनी की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए कुमाउंनी साहित्य के दो सौ साल की लिखित परंपरा की भी जानकारी दी और अपने वक्तव्य के अंत में उन्होंने सभी अभ्यागतों के प्रति अपनी जो मंगल कामनाएं दीअसल में,16 अगस्त,2015 को हिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष चंद्रशेखर कांबार ने ताम्रपत्र और शॉल से जो मथुरादत्त मठपाल जी को जो सम्मानित किया, वह राष्ट्रीय धरातल पर उत्तराखंड की उपेक्षित भाषा का ही सम्मान था. मथुरादत्त मठपाल जी कुमाऊंनी भाषा की समाराधना में लगे हुए उन साधकों में से हैं,जो जीवन पर्यंत हमारी मातृभाषा के संवर्धन और संरक्षण के लिए समर्पित हैं. मैं यहां उसी अवसर के सन्दर्भ में ‘नैनीताल समाचार’ में प्रकाशित वरिष्ठ पत्रकार दीपा कांडपाल की निम्नलिखित टिप्पणी को यहां अक्षरशः उद्धृत करना चाहुंगा जो मठपाल जी की लोकधर्मी रचना धर्मिता का वास्तविक मर्म भी प्रकट करती है“मथुरा दत्त मठपाल जी माटी की नराई, जात-थात की धात,च्यूड़- हरेला- घुघुत- बिरुड़ की लीक,मेले-कौतिक-जात्राओं की झरफर, अपने कुमैया होने की चिनाण, आण-काणि कथ्यूड़ों को कंछ-मंछों तक पहुँचाने में लगे रहने वाले एक ऐसे रचनाकार हैं,जो एक लम्बे समय से ‘दुदबोली’ पत्रिका एवं अपने स्फुट लेखन के माध्यम से कुमाउनी के आँखरों की सज-समाव, टाँज-पाँज कर रहे हैं. अपने लेखन में भाषा की चिन्ता करने वाले मठपाल जी की कविताओं में कुमाउनी की ठसक, लय-ताल, लोकोक्तियाँ, मुहावरे, उतार-चढ़ाव और बिम्बात्मकता का सुघड़ समन्वय उनको अन्य कवियों से विशिष्ट बना देता है.” (नैनीताल समाचार,29 जुलाई,2015: “चारुचन्द्र पांडे और मथुरादत्त मठपाल सम्मानित”) अगस्त 2019 को चन्द्रकुंवर बर्त्वाल स्मृति शोध संस्थान समिति द्वारा कुमाऊंनी साहित्यकार मथुरादत्त मठपाल जी को साहित्य के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए ‘हिमवन्त साहित्य सम्मान’ से सम्मानित किया गया. मठपाल जी को देहरादून में हुए उत्तराखंड लोकभाषा सम्मेलन में 16 अप्रैल, 2011को उत्तराखंड भाषा संस्थान द्वारा डॉ.गोविंद चातक सम्मान से अलंकृत किया गया था.वर्ष 1988 में उत्तर प्रदेश निधि संस्थान द्वारा उन्हें सुमित्रा नंदन पंत नामित पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है.आज हम कुमाऊंनी भाषा और उसकी माटी की सुगंध बिखेरने वाले लोकभाषा और लोक संस्कृति को समर्पित ‘दुदबोलि’ के शिल्पकार, साहित्यकार और समालोचक ऋषिकल्प श्री मथुरादत्त मठपाल जी स्व मथुरा दत्त मठपाल प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित सुमित्रानंदन पंत पुरस्कार,कुमाउनी साहित्य सेवी, उत्तराखंड भाषा सम्मान,गोविंद चातक सम्मान,सेलवानी एवम हिमवंत सम्मान,शेरसिंह बिष्ट अनपढ़ कुमाउनी कविता सम्मान सहित चंद्रकुंवर बर्थवाल साहित्य सेवा सम्मान प्राप्त कर चुके साहित्य कार रहे हैं ।स्व. मथुरा दत्त मठपाल की हमेशा चिंता का विषय रहा। स्व. मठपाल ने अपनी व्यक्तिगत रचनात्मकता के साथ-साथ सामूहिक रचनात्मकता को जिस प्रकार बढ़ावा दिया इसके लिए वह हमेशा याद किए जाएंगेलेखक के निजी विचार हैं वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।