डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला. ।
शिक्षा में सुधार पर शिक्षा अफसरों का ध्यान भले ही न हो, लेकिन घपले-घोटाले दबाने में इनका कोई सानी नहीं। प्रधान महालेखाकार लेखा परीक्षा (कैग) की जांच में पकड़े गए घपलों का हश्र इसे साबित कर रहा है। 2010-11 से वर्ष 2019-20 के बीच शिक्षा विभाग में मिले 443 घपले-घोटालों में अफसरों ने कार्रवाई तक नहीं की। छात्रवृत्ति घोटाले में शामिल रहे करीब दो दर्जन अधिकारियों पर चार राज्यों की सरकारें मेहरबान हैं। घोटाले की जांच कर रही एसआईटी ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा की सरकारों से इनके खिलाफ कार्रवाई की अनुमति मांगी है। मगर, एक साल से किसी भी सरकार ने कार्रवाई की अनुमति नहीं दी। ऐसे में 80 से ज्यादा मुकदमे दर्ज होने के बाद भी एसआईटी जांच अधूरी है।वर्ष 2017 में बहुचर्चित छात्रवृत्ति घोटाला सामने आया था। करीब 200 से ज्यादा शिक्षण संस्थानों ने अपने यहां एससी-एसटी के छात्रों के फर्जी दाखिले दिखाकर समाज कल्याण विभाग से करीब 300 करोड़ से ज्यादा डकार लिए थे। मामला सुर्खियों में आया तो वर्ष 2019 में उत्तराखंड सरकार ने एसआईटी का गठन किया। एसआईटी ने परत दर परत खोलनी शुरू की तो कई बड़ी मछलियों के नाम भी सामने आए।इनमें उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा के सरकारी अधिकारियों के नाम भी सामने आए। इन सबके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत 13 से ज्यादा मुकदमे हरिद्वार और देहरादून के थानों में दर्ज किए गए। कई अधिकारियों को गिरफ्तार भी किया गया, लेकिन बहुत से अधिकारी अब भी ऐसे हैं, जिनके खिलाफ एसआईटी ने कार्रवाई की अनुमति इन राज्यों की सरकारों से मांगी हुई है। करीब एक साल से भी ज्यादा का समय गुजर गया, लेकिन चारों राज्यों की सरकारों ने इन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति नहीं दी है। हाल ही में हरिद्वार और देहरादून के शिक्षण संस्थानों को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भी नोटिस जारी किए हैं। इनके संचालकों को पांच साल का ब्योरा लेकर प्रस्तुत होने को कहा गया है। अब इन संस्थानों पर प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के तहत कार्रवाई की जाएगी। सरकार केंद्र से लेकर राज्यों तक जीरो टॉलरेंस का नारा देती है, लेकिन हकीकत इसके कुछ उलट ही दिखती है. भाजपा सरकार शासित प्रदेशों में ही एससी और एसटी छात्रों के शिक्षण संस्थानों में फर्जी प्रवेश के नाम पर करोड़ों की छात्रवृत्ति का घोटाला करने वाले अधिकारियों पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है. इन घोटालों की जांच कर रही एसआईटी को चार राज्यों के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति नहीं दी गई है. जिसके कारण एक वर्ष का समय होने के बाद भी एसआईटी की टीम इन घोटालेबाज अधिकारियों पर कोई एक्शन नहीं ले पाई है. इन अधिकारियों पर अलग-अलग स्थानों पर 80 से भी अधिक मुकदमे दर्ज हैं. सरकारें जो लगातार जीरो टॉलरेंस का नारा देती हैं, उसके बाद भी इन सरकारों ने करोड़ों के घोटालेबाज अधिकारियों पर कार्रवाई का अनुमति नहीं दी. मगर आज भी कई अधिकारी इस जांच से बाहर हैं. जिसमें उत्तराखंड के 11, उत्तर प्रदेश के 9, हिमाचल के 2 व हरियाणा का एक अधिकारी शामिल है. जिनके खिलाफ एसआईटी ने जांच और कार्रवाई के लिए इन चारों राज्यों की सरकारों से अनुमति मांगी, लेकिन एक वर्ष हो जाने के बाद भी अभी तक अनुमति नहीं मिल पाई है.लेखक के निजी विचार हैं वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।