डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला ।
14 जुलाई से शुरू होने जा रही कांवड़ यात्रा के लिए इस बार उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश सरकार खासा तैयारियों में जुटी हुई है। वेस्ट यूपी के साथ साथ इस बार उत्तराखण्ड में भी कांवड़ियों का जोरदार स्वागत करने की तैयारी हो रही है। कोविड के चलते इस बार कांवड़ यात्रा में जबरदस्त भीड़ जुटने की उम्मीद लगाई जा रही है। जिसे देखते हुए इस बार दोनों सरकारों ने कांवड़ियों का स्वागत जोरदार तरीके से करने का ऐलान किया है। उत्तराखण्ड के पर्यटन मंत्री ने बीते दिनों कहा था कि कोविड महामारी के कारण दो साल से कांवड़ यात्रा बाधित रही। ऐसे में इस बार कांवड़ यात्रियों पर हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा की जाएगी। कांवड़ यात्रा का धार्मिंक महत्व तो जगजाहिर है, लेकिन इस कांवड़ यात्रा से वैज्ञानिकों ने उत्तम स्वास्थ्य भी जोड़ दिया है। प्रकृति के इस खूबसूरत मौसम में जब चारों तरफ हरियाली छाई रहती है तो कांवड़ यात्री भोलेनाथ को जल चढ़ाने के लिए पैदल चलते हैं।पैदल चलने से हमारे आसपास के वातावरण की कई चीजों का सकारात्मक प्रभाव हमारे मनमस्तिष्क पर पड़ता है। चारों तरफ फैली हरियाली आंखों की रोशनी बढ़ाती है। वहीं ओस की बूंदे नंगे पैरों को ठंडक देती हैं तथा सूर्य की किरणें शरीर को रोगमुक्त बनाती हैं।ये यात्रा प्रकृति और मानव के संबंधों में नई उष्मा, निकटता एवं प्रेम को बढ़ाती है। डॉक्टरों के मुताबिक धार्मिक चेतना से मानव जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कांवड़ यात्रा स्वास्थ्यप्रद होती है। पैदल, नाचते-गाते और दौड़ लगाते हुए शिवभक्त जाते हैं। इससे शरीर में खुशी के हार्मोंस जेनरेट होते हैं। व्यक्ति तनाव मुक्त हो जाता है। पैदल चलने से मांसपेशियां मजबूत होती हैं और हार्ट और फेफड़ों को शुद्ध ऑक्सीजन मिलती है।
पवित्र गंगा को स्वर्ग अर्थात् पहाड़ों से पृथ्वी अर्थात् मैदानी इलाकों में लाने के लिए महान शिव के द्वारा जिस श्रमदान का आयोजन किया गया वह उस समय अत्यंत दुष्कर कृत्य रहा होगा। पर्वतों के बीच गमन करना और श्रमदान करना निश्चित ही कोई सुगम कार्य नही रहा होगा। कितने ही किसान-श्रमिक कर्तव्य की बलिवेदी पर न्योछावर हुए होंगे।यह बात वह शिव भक्त कांवड़िये आसानी से समझ सकते हैं जो गोमुख या उसके भी ऊपर ऊंचाइयों से जल लाने हेतु पैदल पद यात्रा करते हैं। उसी महान श्रमदान की स्मृति आज भी कांवड़ के विशाल आयोजन में संरक्षित दिखाई पड़ती है।संभवतः हताहत तथा कालकलवित हुए कृषकों व श्रमिकों की आत्मा की शांति की कामना के लिए उसी पवित्र जल से शिव को जलाभिषेक करने की उज्जवल परम्परा का विकास कांवड़ यात्रा मे कहीं न कहीं दृष्टिगोचर होता है। इस तथ्य से यह भी जाना जा सकता है कि जो जल हमें आज इतनी आसानी से प्राप्त है वह कितना मूल्यवान है 14 जुलाई से श्रावण मास की कांवड़ यात्रा शुरू होने जा रही है। इस बार यात्रा में बड़ी संख्या शिवभक्तों की उमड़ने की संभावना है। यात्रा मार्ग पर श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो, इसके लिए समय-समय पर पौड़ी, टिहरी और देहरादून जिले के अधिकारियों के साथ बैठक आयोजित कर रहे हैं। बैठक में संबंधित अधिकारियों को शिव भक्तों के लिए व्यवस्थाएं चाकचौबंद करने के निर्देश दिए जा रहे हैं लेकिन धरातल पर विभागों की व्यवस्थाएं नजर नहीं आ रही हैं।नीलकंठ धाम में जलाभिषेक के लिए राजाजी टाइगर रिजर्व पार्क से होकर जाने वाले नीलकंठ पैदल मार्ग पर शिव भक्तों की आवाजाही शुरू हो गई है। इस मार्ग पर एक भी शौचालय नहीं है। शौचालय की व्यवस्था नहीं होने से श्रद्धालु खुले में शौच करने को मजबूर हैं। जलाभिषेक करने से पहले शिव भक्त गंगा घाटों और तटों पर डुबकी लगाकर गंगाजली भरने के बाद नीलकंठ धाम की ओर रवाना होते हैं। इस दौरान गंगा घाटों और तटों पर लाखों तादाद में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है लेकिन तीर्थनगरी में सिंचाई विभाग की ओर से शिवभक्तों की सुरक्षा के कोई पुख्ता इंतजाम नहीं हैं।मुनि की रेती के शत्रुघ्न घाट, हनुमान घाट, श्री दर्शन महाविद्यालय घाट, पूर्णानंद घाट, लक्ष्मणझूला अंतर्गत संत सेवा घाट, किरमोला घाट, राधे श्याम घाट, नावघाट, वेद निकेतन घाट आदि जगहों पर लोहे की जंजीरें गायब हैं। घाटों पर केवल एक दो जंजीरें ही नजर आ रही हैं। लक्ष्मणझूला शिव चौक से लेकर रामझूला तक लगे पेयजल स्टैंड पोस्टों में एक दो को छोड़ अन्य पेयजल स्टैंड पोस्ट सूखे पड़े हुए हैं। लक्ष्मणझूला से नीलकंठ धाम तक बना मोटर मार्ग लोक निर्माण विभाग दुगड्डा की उदासीनता का दंश झेल रहा है।स्वर्गाश्रम स्थित भूतनाथ मंदिर के समीप टूरिस्ट टैक्सी ऑनर्स एसोसिएशन लक्ष्मणझूला के मुख्य गेट पर सड़क बदहाल बनी हुई है। फूलचट्टी के समीप पुस्ते क्षतिग्रस्त हैं। गरुड़ चट्टी से लेकर रत्तापानी, फूलचट्टी और घट्टूगाड़ तक सड़क किनारे बेतरतीब तरीके से खड़े वाहन यातायात में बाधा उत्पन्न करते हैं। यहां कैंप संचालकों के पास पार्किंग की व्यवस्था नहीं होने से पर्यटकों के वाहन सड़क किनारे खड़े रहते हैं। जो कांवड़ यात्रा के दौरान शिव भक्तों का मार्ग अवरुद्ध करेंगे। नीलकंठ पैदल मार्ग पर बाघ खाला से लेकर पूंडरासू तक शिव भक्तों के लिए पथ प्रकाश की भी कोई व्यवस्था नहीं है। हाथी बाहुल्य क्षेत्र में श्रद्धालु अंधेरे में आवाजाही करेंगे।पूरे कांवड़ क्षेत्र को 12 सुपर जोन, 31 जोन और 133 सेक्टर में बांटा गया है। गोमुख यात्रा प्रतिबंध लगाया गया है। एक दिन में केवल 150 कांवड़ यात्रियों को ही गोमुख जाने की अनुमति रहेगी। साथ ही इसके कांवड यात्रियों पर भी कई तरह के प्रतिबंध लगाए है। नियमों का उल्लंघन करने पर सख्त कार्रवाई की जाएगीपुलिस ने हरिद्वार आने वाले कांवड़ियों को अपने इलाके के थाने और कोतवालियों में सूचित कर यात्रा शुरू करने की अपील की गई है। कांवड़ियों से अपील की गई है कि वह एक सूची साथ लेकर आएं, जबकि एक सूची को अपने क्षेत्रीय थाने में जमा करा दें। एक सूची हरिद्वार जिले में प्रवेश करते हुए पुलिस को दी जाए, ताकि हरिद्वार पुलिस के पास भी जानकारी रहे। बताया जा रहा है कि कांवड़ की ऊंचाई के सम्बन्ध में बताया गया कि अधिक से अधिक ऊंचाई सात फीट होनी चाहिये, ताकि यात्रा में व्यवधान उत्पन्न न हो। इसके साथ ही पहचान पत्र लाना जरूरी किया गया है।दो साल बाद हो रही कांवड़ यात्रा के दौरान प्रशासन के अनुसार चार से पांच करोड़ कांवड़ियों के हरिद्वार पहुंचने का अनुमान है। यह तादाद अब तक की सर्वाधिक है। कांवड़ यात्रा को लेकर कड़े सुरक्षा प्रबंध किए गए हैं। ड्रोन से निगरानी होगी। 14 जुलाई से 26 जुलाई तक कांवड़ यात्रा है। यह एक बहुत बड़ा धार्मिक आयोजन है। इसके लिए कई तरह की तैयारियां की जा रही है। जहां कांवड़ियों की सुविधा का चारधाम,मसूरी एवं देहरादून आने वाले यात्रियों के लिए हरिद्वार से हटकर रूट तैयार किये गए हैं।सुरक्षा व्यवस्था के लिए ड्रोन, सीसीटीवी का इस्तेमाल और सोशल मीडिया मॉनिटरिंग को बढ़ाया जाएगा। साथ ही शिवभक्तों से सोशल मीडिया के माध्यम से अपील की जायेगीसुरक्षा व्यवस्था के लिए ड्रोन, सीसीटीवी का इस्तेमाल और सोशल मीडिया मॉनिटरिंग को बढ़ाया जाएगा। साथ ही शिवभक्तों से सोशल मीडिया के माध्यम से अपील की जायेगीयह तादाद अब तक की सर्वाधिक है। कांवड़ यात्रा को लेकर कड़े सुरक्षा प्रबंध किए गए हैं। ड्रोन से निगरानी होगी। इस बार एक दिन में केवल 150 कांवड़ियों को ही गोमुख जाने की अनुमति रहेगी। लेकिन सवाल यह भी है कि उस वक्त तक कोरोना महामारी की स्थिति कैसी रहेगी क्योंकि वर्तमान में कुछ राज्यों में कोरोना वायरस के मामलों में वृद्धि देखी जा रही है। कावड़ यात्रा के दौरान कानून व्यवस्था से लेकर श्रद्धालुओं की सुविधाओं तक का ध्यान रखा जाएगा। इसको लेकर प्रशासनिक स्तर पर तैयारियां शुरू की जा चुकी है।कावड़ यात्रा के दौरान भारी संख्या में शिवभक्त गंगाजल लेने हरिद्वार जाते हैं। उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा से भारी संख्या में भक्त उत्तराखंड के हरिद्वार जाते हैं और वहां से जल लाते हैं। कुल मिलाकर देखें तो इस बार कावड़ यात्रा को भव्य बनाने की दिशा में उत्तराखंड सरकार लगातार काम कर रही है।लेखक के निजी विचार हैं वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।