रिपोर्ट विरेन्द्र वर्मा
उत्तराखण्ड में जंगली फलों का तो समृद्ध संसार है। औषधीय गुणों से भरपूर जंगली फलों का लाजवाब जायका हर किसी को इनका दीवाना बना देता है।हिमालयी क्षेत्र में समुद्रतल से 750 से 1800 मीटर तक की ऊंचाई पर बहुतायत में पाया जाने वाला हिंसर (यलो रसबेरी या हिमालयन रसबेरी) बेहद जायकेदार फल है। यह भी जंगलों और पहाड़ी रास्तों पर अपने आप उगता है। हिंसर का वैज्ञानिक नाम रूबस इलिप्टिकस है, जो रोसेसी कुल का पौधा है। हिंसर में अच्छे औषधीय अवयवों के पाए जाने के कारण इसे विभिन्न रोगों के निवारण में परंपरागत औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है। प्राचीन समय से लेकर वर्तमान तक हिंसर के संपूर्ण वैज्ञानिक विश्लेषण और परीक्षण के उपरांत ही इसे एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी ट्यूमर और घाव भरने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। अच्छी फार्माकोलॉजी एक्टिविटी के साथ-साथ हिंसर में पोषक तत्व, जैसे कॉर्बोहाइड्र्रेट, सोडियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम, आयरन, जिंक और एसकारविक एसिड प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसमें विटामिन सी 32 प्रतिशत, मैगनीज 32 प्रतिशत, फाइबर 26 प्रतिशत और शुगर की मात्रा चार प्रतिशत तक आंकी गई है। इसके अलावा हिंसर का उपयोग जैम, जेली, विनेगर, वाइन, चटनी आदि बनाने में भी किया जा रहा है। यह मैलिक एसिड, सिटरिक एसिड, टाइट्रिक एसिड का भी अच्छा स्रोत है। यही वजह है कि धीरे-धीरे इसके फलों से बाजार भी परिचित होने लगा है।